बांसवाड़ा-शहर की बाहुबली कॉलोनी स्थित सन्मति समवशरण में आचार्य सुनील सागरजी महाराज ने कहा कि जब शरीर ही हमारा नहीं है और जो साथ जाता नहीं है, तो फिर और अपना क्या है। जो यह जानते हैं उन्हें फिर सब छोड़ने में दान करने में उन्हें कष्ट नहीं लगता है।
संसार में यदि अकेले ही जन्म मरण करता आया है स्वयं ही अपने दुख का कारण है तो वह स्वयं ही अपने सुख का कारण भी है। हमारे निर्मलता समझ शांति रूप हमारा धर्म एवं निज आत्मा ही शरण है। कोई दूसरा कब तक शरण देगा। इसका विचार करना चाहिए। भगवान महावीर कहते हैं हमारी आत्मा ही शुद्ध होकर परमात्मा बनती हैं। इस संसार में दुख अपार है, इसलिए यह असार है। आचार्यश्री ने विश्व शांति की भावना व्यक्त करते हुए कहा कि हम प्रार्थना करते हैं कि आस्ट्रेलिया की आग बुझ जाए जो 48 करोड़ जानवर उस आग में आहुति बने हैं, उनकी आत्मा को शांति मिले। आज व्यक्ति इतना स्वार्थी हो गया है कि स्वयं की इच्छा पूर्ति के कारण अबुल पशुओं के प्राण तक ले लेता है। हम जैसा कर्म करते हैं वैसा फल अवश्य भोगना पड़ता है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि हमारी भूल यही होती है कि जो याद रखना है उसे हम भूल जाते हैं। जिसे भूल जाना है याद रखते हैं। किसी की गलती को भूल जाना और किसी का किया उपकार याद रखना। इससे किसी के साथ अन्याय अनीति नहीं होगी अहिंसा का सद्भाव होगा।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
