विदिशा-जिस ज्ञान में तीनों लोको की वस्तुएं दर्पण के समान प्रतिबिंबित होता है उसे केवल ज्ञान कहते हैं। जैसे दर्पण राग द्वेष से रहित होता है लेकिन संसारी जीव के परिणाम राग द्वेष सहित होते हैं। उपरोक्त उदगार मुनि श्री प्रसाद सागर जी महाराज ने श्री शांतिनाथ जिनालय स्टेशन जैन मंदिर में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि केवल ज्ञानी राग द्वेष से रहित होता है। आत्मा का स्वभाव जानना और देखना है। आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज हमेशा कहते हैं कि ज्ञान ही दुख का मूल है और ज्ञान ही दुख का शूल। उन्होंने चारों अनुयोगों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इसमें इतिहास की सभी पूर्व घटनाओं एवं महापुरुषों का वर्णन होता है। साथ ही जिन्होंने अपने जीवन में संघर्ष करते हुए आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है उसे प्रथमानुयोग कहते हैं। दूसरा है करुणानुयोग इसमें खगोल एवं भूगोल के बारे में जानकारी रहती है। प्रकृति कैसी होती हैं एवं 148 कर्म प्रकृतियाें का वर्णन होता है। उन्होंने तीसरे अनुयोग पर चर्चा करते हुए कहा कि चरणानुयोग अर्थात नागरिक शास्त्र हैं इसमें कैसे चले कैसे रहें कैसे उठें बैठें श्रावकों और मुनियों की आचार संहिता रहती है। चौथा दृव्यानुयोग होता है। जिसे हम जैन साइंस भी कह सकते हैं। इसमें सात तत्व और नौ तत्वों एवं पंचास्तिकाय का वर्णन होता है। इस प्रकार चारों अनुयोगों का संक्षिप्त परिचय दिया जिनसे मिलकर ही जिनवाणी होती है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
