शाहगढ़-धन अर्जित करना बुरा नहीं माना गया, लेकिन धनार्जन न्याय पूर्वक हो। क्योंकि असत्य के पैर नहीं होते और अनीति की जड़ नहीं होती। अन्याय और अनीति के मार्ग पर चलकर व्यक्ति अपने जीवन का विकास नहीं कर सकता।
यह बात धर्मसभा को संबोधित करते हुए आर्यिकाश्री प्रशांत मति माता जी ने कही आर्यिकाश्री ने कहा कि अन्याय से उपार्जित धन जीवन में कभी सुख नहीं दे सकता और न ही उस धन से व्यक्ति का विकास हो सकता। शुभ और लाभ ये दो शब्द भारतीय संस्कृति की सशक्त अभिव्यक्तियां हैं। शुभ लाभ ही हमारे जीवन का आधार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भौतिक सुखों की चकाचौंध व्यक्ति को अपने मार्ग से भटका रही है।
मानव अपनी आकांक्षाओं की पूर्ती करने के लिए अनमोल व्यर्थ कर देता है। आकांक्षाएं फिर भी अधूरी रह जाती हैं। अपने जीवन को आत्मकल्याण के मार्ग पर लगाओ ताकि मानव जीवन सार्थक हो। रात्रि में विधानचार्य प्रदीप पीयूष द्वारा अपने प्रवचनों में कहा कि बगीचे में आम लगा आम को आंखों ने देखा पैर चले हाथों ने तोड़ा मुख ने स्वाद लिया सारी परिकल्पना मन ने की सभी श्रावकों को जिन मंदिर आते समय अपने मन को एकाग्र रखना चाहिए और श्रावक पुण्य के भाव से मंदिर में आता है संसारी होने से वह उलझ जाता है या उसका पाप कर्म है जिससे वह सरकारी से विमुक्त होकर खुद को पाप की ओर मोड़ लेता है मनुष्य का शरीर यही जलकर राख हो जाना है सिर्फ मन रूपी की आत्मा जीवित रहती है जो अपने संस्कारों के रूप में पुण्य पाप के कामों के आधार पर संसार में बनी रहती है मनुष्य को कल्याण करना है तो इसी भक्ति में खुद को लगाएं और चिंतन करें।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी
