दान तीर्थ के प्रवर्तन का पावन दिन है अक्षय तृतीया अनुभव सागर

 बागीदोरा-कस्बे में संयम भवन में विराजित आचार्य अनुभव सागरजी महाराज ने जैनागम में अक्षय तृतीया की महत्ता के बारे में बताते हुए कहा कि यह पावन दिवस उसी दान तीर्थ के प्रवर्तन का दिवस है। जैनागम में बताया गया है कि इस अवसर्पिणी काल के आदी में भोग भूमि से कर्मभूमि की और जाते युग को प्रथम तो षट्कर्म व आत्म कल्याण की राह पर चलने वाले प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ने श्रमण परंपरा का भी प्रवर्तन किया। जिन्होंने दीक्षा के उपरांत 13 माह तक आहार का लाभ नहीं होने पर आज ही दिवस राजा श्रेयांश के निमित्त से प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ जी को आहार लाभ हुआ। आहार दान राजा श्रेयांश के लिए अक्षय पुण्य के अर्जन का निमित्त बना तभी तो आज का दिवस अक्षय तृतीया के रूप में आज तक पवित्र हुआ। उन्होंने कहा कि सभी प्रकार के दानों में आहार दान को आचार्यों ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ कहा है चूंकि आहार श्रावक के लिए कर्म निर्जरा का निमित्त तो ही है साथ ही साधु की साधना का निमित्त होने से जगत कल्याण का भी कारण है। आचार्य श्री ने वर्तमान में भौतिकता की चकाचौंध में भटकती संपूर्ण मानव सभ्यता, मानवीय मूल्यों का गिरता स्तर, प्रकृति और संस्कृति पर हावी होती मानव की आकांक्षाएं बलवती हो रही हैं। इस बीच कठिन तपश्चर्या के मार्ग पर चलने वाले दिगंबर श्रमणों का दीक्षित होना और सब विपरित परिस्थितियों के बाद भी निरंतर मोक्ष मार्ग पर अग्रेसित होना कमतर नहीं हैं। अपितु बड़े पुण्य का प्रभाव हैं। आगे कहा कि कलिकाल और देह की सहनशीलता में आती निरंतर कमी और उस पर भी शरीर को आचार्य उन्हें अन्न का कीड़ा कहा है। वैराग्य कितना भी प्रबल क्यों ना हो परंतु साधना के लिए शरीर एक सशक्त माध्यम है। सर्व साध्य अर्थात हिंसा के त्यागी मुनिराज की चर्या का एक महत्वपूर्ण अंग है आहार चर्या। जहां कोई इच्छा नहीं है अपेक्षा नहीं है कोई संकेत नहीं है मात्र साधना के निमित्त शरीर को संभालने का भाव है। और इस महत्वपूर्ण साधना में सहभागी बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है अत्यंत पुण्यशाली श्रावक वह हैं जो अपने जीवन यापन के साथ अपने कल्याण और धर्म तीर्थ की स्थिति के लिए श्रमणों की आहार आदि पदार्थों से समुचित वैयावृत्ति करता है। आचार्य श्री ने कहा कि लॉकडाउन में पावन दिवस को घर पर रहकर ही मनाने और सभी धार्मिक अनुष्ठान भी घर पर ही करने का आह्वान किया।
              संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी

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