*✍ पारस जैन " पार्श्वमणि' ,पत्रकार*-भगवान महावीर स्वामी का सिद्धांत "जियो ओर जीने दो" की आज परम आवश्यकता है । उनके द्वारा बताए गये सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक है । भगवान महावीर स्वामी की पूजा श्रद्धा भक्ति समर्पण भाव से घर पर हर्षोल्लास के वातावरण की गई। स्वर्ग की तरह प्रकृति ने अपनी विरासतों को मानव जाति को दिया था। एक एक विरासत अनमोल अमूल्य अदभुत है। आज के दौर में मानव प्रकृति से मिली अनमोल निधियों को बहूत दोहन कर रहा है। मूक निरीह जीवो की विराधना प्रति वर्ष करोड़ो की संख्या में मांसाहार के लिए की जाती है। चीन के बुहान शहर में तो 112 प्रकार प्रजातियों जीवों को खाया जाता है। हर चीज की एक सीमा होती है।प्रकृति और नियति ने सभी जीवो प्राणियों को जीवन जीने का अधिकार दिया है ।*प्रकृति भी कब तक सहन करेगी आखिर उसने भी अपना धेर्य खो दिया। मूक निरीह प्राणियों के करुण क्रंदन ,पुकार ,चीत्कार को सुन लिया और कोरोना रूपी वायरस वैश्विक महामारी के रूप विश्व को में दे दिया।अब तो संभल जाओ। मांसाहारी आहार अब पूरी तरह बंद हो जाना चाहिए। पूरे भारत को शाकाहारी बनाने की कोशिश करनी होगी। भारतीय संस्कृति पूजनीय वंदनीय अभिनंदनीय है। यहाँ मांसाहार को नही शाकाहार सर्वश्रेष्ठ आहार बताया गया है । आज के दौर में आचार विचार सब मे बहुत परिवर्तन आया है खान पान का स्तर तो बहुत गिर गया है । आज के बच्चे एवम युवा फ़ास्ट फूड चाउमीन बर्गर पीजा इत्यादि न जाने कितनी वेरायटी आती है पसंद करते है।जो अनेकानेक बीमारियों का घर है। 100 साल के इतिहास में पहली बार पूरे देश मे सभी धर्म आयतन मानव जाति के लिए बन्द हो गए।यह कितना बड़ा संकेत है। स्वयं लेखक पारस जैन "पार्श्वमणि पत्रकार की सोच में इससे बड़ा और कोनसा संकेत हमे चाहिए। आज हम सभी व्यक्तिगत धर्म की अपेक्षा राष्ट्र धर्म निभा रहे है।राष्ट्र ही नही रहेगा तो हम व्यक्तिगत धर्म का पालन कैसे कर पाएंगे।।यह बहुत जरुरी भी है।देश अभी बहुत विकट स्थिति में है। अब समय आ गया है कि हम प्रकृति के इशारों को समझे जाने। प्रकृति से प्राप्त विरासतो का अब सरक्षंण सवर्धन करने की परम आवश्यकता है। यह कोरोना वायरस भगवान महावीर स्वामी के संदेश करुणा को लेकर आया है । करुणा करो करुणा करो सिर्फ जीवो पर करुणा करो।पारस जिनवाणी जैन टी वी द्वारा बहुत धर्म प्रभावना इस समय की जा रही है। इसी से नित्य अभिषेक पूजन गुरुवाणी सुनने को मिल रही है। हर चीज का अपना एक समय आया है शायद नियति को यही मंजूर था।
