सागर-जीवन में सुखी बनना है तो आपको कहां क्या बोलना है क्या नहीं बोलना है कौन से कार्य करना है कौन से नहीं करना है। जैसा व्यवहार आप अपनी दुकान पर ग्राहकों से करते हैं ग्राहकों की सारी बातों को आप हंसकर सुनते हैं उसी प्रकार का व्यवहार आपको सभी के साथ करना चाहिए। यह बात भाग्योदय तीर्थ में विराजमान मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने लाइव प्रवचन में कही।
उन्होंने कहा आपको अपने जीवन में विवेक रखना होगा और यदि आपके पास विवेक है तो सहनशीलता कूट-कूट कर भरी रहेगी। जैसे आप साड़ी की दुकान खोले हैं और कोई महिला आती है 50 साड़ियां देखती है और उसे पसंद नहीं आती हैं तो आप कहते हैं बहन जी दो-तीन दिन बाद नया माल आ रहा है। आप उसे गुस्सा नहीं होते यह आपका मृदुता का व्यवहार आपका व्यवसाय बढ़ाने में आगे आता है और घर में घरवाली कुछ बोले तो महाभारत मच जाता है। सच्चे अर्थों में जो धर्मी रहेगा वह ऐसा कभी नहीं करेगा। मुनिश्री ने कहा अग्नि सभी विकारों को जलाकर के नष्ट कर देती है और शुभ विचार मन में आते ही मन की कालूस्ता और नकारात्मकता समाप्त हो जाती है और विवेक आ जाता है जो कार्य और अकार्य को जानता है क्या करनी है और क्या अकरनी है। आपने गलत व्यवहार किया अप्रिय निर्णय लिया या कठिन बच्चन बोल दिए तो बुद्धि की सुनें। क्या हो गया था बाद में आपको पश्चाताप होता है और सुख में विवेक होता है यह धर्म है।धर्मी होने का पहला प्रमाण विवेक जागना चाहिए विवेक सोना नहीं चाहिए। मेरे द्वारा कोई गलत होता है तो अपनी मर्यादा से वह दूर हो जाता है क्या करना है यह विवेक पर निर्भर है मर्यादाओं की सीमा खींचकर रखना चाहिए यही आपकी लक्ष्मण रेखा है और उसके बाहर आपको नहीं जाने का संकल्प लेना होगा। उसका उल्लंघन कभी नहीं करना होगा। यह जाति,परिवार और कुल की मर्यादा है जो अकरणीय से बस जाग जाता है और उसको कभी जीवन में पश्चाताप नहीं करना पड़ता है। जो सोचा नहीं था वह हो गया एक चूक मनुष्य को पूरे जीवन को रोने पर मजबूर कर देती है। जो जान करके भी अंजान बने हैं उन्हें अपने भावों को ऊपर लाना होगा। मुनि श्री ने कहा थोड़ा सा विवेक जाग गया तो पूरे जीवन मजा ही मजा है। आवेग, अभिमान, आसक्ति और उतावली में कभी विवेक काम नहीं करता है। उस समय व्यक्ति कुछ भी कर सकता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी