पारस जैन " पार्श्वमणि" पत्रकार कोटा-अब ऐसा लग रहा है जैसे सम्पूर्ण प्रकृति का शुद्धिकरण गया हो ।सारी प्रकृति मुस्कुरा रही हो।* *प्रकृति के द्वारा दी गई समस्त विरासतें लह लहा रही है। बहुत भाग रहा था इन्सान । कितना भागोगे कब तक भागोगे किसके लिए भागोगे । एक झटका दिया था और सब अपने अपने घरों में चले गये थे ।* *पर्यावरण शुद्ध गया है।*
*ऐसा लग रहा है कि कलयुग में सतयुग आ गया था । कितना सादा जीवन हो गया था। दाल रोटी ,कुछ कपड़े ,एक घर बस इतना ही काफी लग रहा है।थोड़े में भी आनंद आ रहा था।सुबह योगा करके अपनी पूजा पाठ भक्ति करना पारस जिनवाणी पर गुरुवाणी सुनना , फिर रामायण ,महाभारत ,देखना ,शाम को शंका समाधान जिज्ञासा समाधान देखना ,आरती फिर महाभारत ,रामायण।*
*सारे घर के सदस्यों का यही रूटीन हो गया था।सब मिल कर काम करते थे।*
*भागदौड़ की जिंदगी में ठहराव आ गया था। शांति , संतोष सबके मन मे था।*
*सोना , चांदी, धन ,सुंदर ड्रेस कोई काम नही आ रहा था। थोड़े में गुजारा हो रहा था । यही तो है संतोष धन। सब कुछ था ,बस यही तो नही था।*
*भक्ति की लहर बहती रहती हैं।* *न कोई भाव बढ़ने की खुशी, न कोई घटने का दुख*। *न कोई पर चिंता, न कोई पर निंदा, सिर्फ और सिर्फ परमार्थ का भाव*।
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