बांसवाड़ा-कॉमर्शियल कॉलोनी में स्थित संत भवन में आचार्य अनुभव सागरजी महाराज ने प्रवचन के माध्यम से बताया कि प्राणी आज के समय में कर्तव्य के भाव से दुखी है। सृष्टि का कण-कण स्वतंत्र है। कोई भी किसी पर आश्रित नहीं है। अपने-अपने कर्म फल के अनुसार ही मनुष्य दुख सुख का आवागमन कर रहा है। आचार्य जी ने कहा कि हमें कर्तव्य भाव से उठकर कर्तव्य परायण बनना है। कर्तव्य के भाव आत्मा के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है और कर्तव्य के प्रति जागरूक प्राणी कभी किसी का अहित नहीं करता है। जब तक कोई भी कार्य कर्तव्य भाव से किया जाए तो उचित है, लेकिन जब कार्य कर्तृत्व भाव से किया जाए तो वह अंहकार की पुष्टि का कारण बन जाता है। संसार में कोई किसी का कर्ता नहीं होता। स्वयं ईश्वर भी किसी का कर्ता नहीं है। प्रत्येक जीव स्वयं का कर्ता है। प्रत्येक जीव स्वयं ही अपने कर्म के अनुसार सुख दुःख भोगता है। इस प्रकार जीव कर्तव्य का पालन करे न की कर्तृत्वपने का भाव न रखे। तो ही संसार सुख की अनुभूति करेगा।
संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी
