बांसवाड़ा-मोहन कॉलोनी में स्थित भगवान आदिनाथ मंदिर में आचार्य पुलक सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन के माध्यम से बताया कि आज धर्म क्षेत्र में ध्यान की बहुत कमी नजर आती जा रही है। विद्वत संस्था हो या साधु संस्था हो वह है जो क्रियाकांड पर अधिक जोर देते हैं। दूसरी वह संस्था है जो अध्यात्म और ज्ञान पर बल देती है। आचार्य जी ने कहा कि ये दोनों ही ध्यान से दूर होते जा रहे हैं। आज हम देखते हैं कि कुछ धर्मों में ऐसे हैं, जो ध्यान की प्रणाली को अपनाते हुए चल रहे हैं। वहीं कुछ धर्म ऐसे हैं जो धर्म के ध्यान से वंचित हो रहे हैं।
आचार्य जी ने कहा कि ध्यान सर्वश्रेष्ठ तप है। ध्यान से बड़ी कोई तपस्या नहीं है। प्रत्येक महापुरुषों ने ध्यान से आत्म सिद्धि को प्राप्त किया है। आज मानव के अंदर जितनी अशांति कषाय तनाव के जंजाल में सिद्धि का शिकार होता जा रहा है। जिसका सबसे बड़ा कारण व्यक्ति के जीवन से ध्यान का नहीं होना है। आचार्य जी ने कहा कि ध्यान ही तप है, ध्यान से ही कल्याण होता है। ध्यान को जीवन का अंग बनाओ। ध्यान का प्रतिदिन अभ्यास करो। धीरे-धीरे ध्यान में उतरने का प्रयास करो। आचार्य जी ने कहा कि जब हम पेन कहीं रख देते है फिर वह ध्यान से हट जाते हैं तो हम कितने अशांत हो जाते हैं। एक बच्चा स्कूल जाता है परीक्षा देने जाता है। साल भर पढ़ता है, लेकिन एग्जाम के समय में पढ़ाई भूल जाता है। याद किया हुआ ध्यान नहीं रख पाता है। उसके साल भर की पढ़ाई बेकार हो जाया करती है। आदमी गाड़ी चला रहा है ट्रैफिक में थोड़ा सा ध्यान नहीं रखता है तो एक्सीडेंट हो जाया करता है। आचार्य जी ने कहा कि दैनिक जीवन में कुछ कार्य करें या ना करें ध्यान अवश्य करें। लोग धर्म करके भी अशांत है, पूजा पाठ करके भी अशांत हैं, धर्मात्मा नहीं बन पा रहे। क्या वजह है अध्ययन करके भी अशांत है। अध्यात्म की खुशबू नहीं बिखरती परिणामों में बदलाव नहीं आता वह नहीं बदलता सत्संग रोज करते हैं और सत्संग की भाषा में परिवर्तन नहीं आ रहा है। उसका मुख्य कारण ध्यान से नाता टूटता जा रहा है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
