"मेरी भावना" को एन. सी. ई. आर. टी. के क्लास 7 में शामिल करना सम्पूर्ण भारत की जैन समाज के लिए गौरव का विषय*

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*✍️ पारस जैन "पार्श्वमणि" पत्रकार कोटा*
*भारत  वर्ष की सम्पूर्ण जैन समाज के लिए परम हर्ष और महान सौभाग्य की बात है कि जैन धर्म दर्शन के प्रख्यात पंडित श्रीजुगलकिशोर मुख्तार जी "युगवीर "के द्वारा रचित "मेरी भावना " रचना को एन. सी. ई. आर. टी.  के 7 क्लास के  हिन्दी में  प्रथम चैप्टर  के रूप में लिया गया। आज इस मेरी भावना को सम्पूर्ण विश्व में, संपूर्ण विद्यालय महाविद्यालयों में  प्रार्थना सभा में प्रार्थना के रूप में गायन किया जाना चाहिए। इस महान रचना के एक एक शब्द में गागर में सागर भरा है। आज के इस वैश्विक महामारी के दौर में विश्व का प्रत्येक प्राणी इसको यदि बड़ी श्रद्धा भक्ति और समर्पण भाव से प्रति दिन बोले तो उससे बहुत सकारात्मक ऊर्जा का संचार प्रकृति में तो होगा ही साथ उसके जीवन मे भी बहुत गहरा प्रभाव पड़ेगा जीवन जीवंत होने लगेगा। सभी नकारात्मक परिस्थितिया भी बदल जाएगी।  इस "मेरी भावना" रचना मे प्राणी मात्र के कल्याण की भावना निहित है। सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया की मंगल भावना नीहित है।बचपन मे दिए गए सदसंस्कार पचपन की दहलीज तक बने रहते है।   मेरी भावना का यदि भाषा तात्विक विश्लेषण किया जाए तो इसका एक एक शब्द बहुमूल्य है।  विद्यार्थियों को इन शब्दों की व्याख्या कर इसकी महत्व पर भी प्रकाश डाला जाए जिससे विद्यार्थी अपने जीवन की महत्व एवं जीव दया जीव रक्षा तथा सामाजिक बुराइयों सी दूर रहने की इच्छा शक्ति जागृत होगी तथा  नैतिकता सामाजिकता परोपकार की भावना भी जागृत होगी। प्रकृति की हर विरासत हमे देना सिखाती है चाहे वन, उपवन, पहाड़, पर्वत ,नदी, सागर ,वृक्ष ,पेड़ ,पौधे  ले लो सभी देने का अमर संदेश देते है। मानव को अपनी सोच हमेशा सकारात्मक रखनी चाहिए। सोच से ही मानव स्वर्ग और नर्क की यात्रा करता है। अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है बस सृष्टि अपने आप बदल जाएगी संसार को सुधारने का प्रयत्न नहीं करें स्वयं सुधर जाए। यही भगवान महावीर स्वामी का संदेश है। संसार को नही स्वयम को सुधारो । जीओ ओर जीने दो।"मेरी भावना "रचना आज के युग में नर से नारायण ,कंकर से शंकर, तीतर से तीर्थंकर ,पाषाण से  परमात्मा बनने का मार्ग  प्रशस्त करती है । में अपनी कलम से इस रचना के बारे में जितना भी लिखू कम है। मेरे शब्द कोष में शब्द नही है।यह जो रचना "मेरी भावना" सबकी मंगलमय भावना बने । यही भावना भाता हूँ।*
*प्रस्तुति*
*राष्ट्रीय संवाद दाता*
*पारस जैन " पार्श्वमणि"* *पत्रकार*
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