मुंगावलो- मुनि श्री पुराण सागर जी महाराज ने मंगल उदबोधन मे कहा आचार्य उमा स्वामी ने एक सूत्र दिया इच्छाओ का निरोध करना ही तप है। हम सभी जानते है इच्छाए अनंत है उनकी पूर्ति करना संभव नही है। इच्छाओ की तासीर ऐसी होती है कि वे कभी पूरी नही होती। जीवन पूरा हो जाता है व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा नही कर पाता इच्छाओं का संसार है मनुष्य से यदि इच्छा निकल जाए तो वह ईश्वर है।
उन्होंने कहा हमारी तपस्या इच्छाओं को रोकने तथा कर्मो का क्षय करने के लिए होना चाहिए। मन की चंचलता मिटे मन के विकारी भाव दूर हो, इंद्रियों पर विजय प्राप्त हो, वही सच्चा तप कहलाता है। रावण ने तपस्या कर अनेक विद्याए सिद्ध की परन्तु उद्देश्य खोटा था इसीलिए सारी तपस्या व्यर्थ चली गई। संसार में सेकड़ो लोग है जो लौकिक साम्रगी प्राप्त करने के लिए तपस्या करते है। तुम परमात्मा हो लेकिन भिखारी बनकर जी रहे हों उन्हे उसका पता नही तुम्हारे भीतर की शक्ति क्या है तुम्हें पता नही शक्ति को पहचानो।आज कितने लोग भिखारी बने हुए है और जो अपने दुखों का रोना रोते है जो अपने कष्टों का रोना रोते है सबको समझने की जरूरत है कि तुम्हारे भीतर भी वह अनन्त शक्ति सम्पन्न हीरा पड़ा है पर तुम्हे उसकी पहचान नही है। अज्ञान मिथ्यात्व का आचरण चढ़ा हुआ है उस पर अशक्ति का आचरण चढ़ा हुआ है ये आचरण जब तक नही हटाओगे तुम्हारे भीतर के उस तत्व की पहचान नही होगी शक्ति को पहचानो।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी
