खातेगांव-मुनि श्री ओंकारसागर ने प्रवचन मे कहा स्वच्छ दर्पण जिस तरह छायाचित्र बना सकता है ठीक उसी तरह स्वच्छ मन भी परमात्मा बन सकता है। जिसके लिए आवश्यक है मायाचारी को छोड़ना। जीवन में सरलता आ जाना ही आर्जवता है। जितनी सरलता आती जाएगी हमारी दुर्गतियो का नाश होता जाएगा मुनि श्री उदाहरण के माध्यम से बताया गन्ने की मिठास और जलेबी की मिठास मे जितना अंतर होता है उतना ही अंतर आर्जव धर्म के धारक और सांसारिक मनुष्य मे होता है।
सकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी