खातेगांव-मुनि श्री विनम्रसागर जी महाराज ने अपने उदबोधन में कहा दस धर्म साधु को बचा कर रखते है इनके पालन के बिना साधना फीकी सी लगती है। मायाचारी नही करने का नाम आर्जव धर्म है। जब आपके जीवन में क्षमा विनय होगा। तब ही आर्जव धर्म आपके जीवन में आएगा मन, वचन,काया से कुटिल परिणामो को छोड़ने वाली आत्मा के अंदर यह धर्म प्रविष्ट होता है। उन्होंने कहा श्रद्धालु सांसारिक हिंसा पाप में तो रहते है पर धर्म के प्रति श्रद्धा भी रहती है। धर्मात्मा के पास धर्म रहता है,धर्मात्मा और श्रद्धालु में यही अंतर है। सरल सहज व्यक्ति बहुत दूर तक जा सकता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी