दान देकर उसके प्रति मोह न रखना ही सच्चा त्याग है

    त्याग शीतल झील के समान है, जिसके निकट आते  ही लू भी अपनी तपन को त्याग देती है। पर्युषण पर्व का 8 वा दिन उत्तम त्याग का दिन है। यह हमे स्वयं निकट लाता है। अगर हम स्वयं यानी आत्मा  के वास्तविक स्वरूप की निकटता चाहते है तो हमे द्रव्यो से दूरी बनानी होगी। दान (अभय, आहार , औषधी, शास्त्र) करने के बाद उसका प्रचार करना एवं उसमे राग रखना और यह भाव रखना यह मेरा किया हुआ है मेरा दिया हुआ है यह भाव संसार मे परिभ्रमण का कारण होता है। मेरे पिता या पूर्वजो ने यह मंदिर बनवाया, यह अस्पताल बनवाया, यह गोशाला बनवाई। यह कुल के गौरव का विषय होना चाहिए, किंतु घमंड और अहम का कदापि नही। पूर्वजो ने हमे दान के माध्यम से त्याग धर्म सिखलाया है। इस तरह सीख को व्यवहार मे लाना और दान देकर उसके प्रति मोह न रखना यही तो सच्चा त्याग है। मोह एक प्रकार का  घाव है। उसे ठीक करने के लिए त्याग रूपी मलहम पट्टी करते रहना चाहिए एवम जिनसे यह घाव बढ़ता है ऐसे कषाय, राग,द्वेष परिग्रह आदि भावों से बचना1 चाहिए। अगर हम दुसरो के लिए करना चाहते है तो हमे स्वार्थ का  त्याग सर्वप्रथम करना होगा, क्योकि स्वार्थ का त्याग परमार्थ की सिद्धि के लिए सोपान का  काम करता है।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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