अर्थ का अनर्थ निकालने से विवाद होते है निर्भय सागर जी

 दमोह-आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा धर्म शास्त्र न्याय की तरह होते हैं। धर्म शास्त्र कानून की तरह होते है आप्त द्वारा कथित गणधर आचार्य द्वारा व्याख्यायति और मुनि द्वारा लिखित ग्रंथ को आगम कहते है। रागी, द्वेषी, मोही, व्यसनी, कषायी औऱ लोभी लालची द्वारा लिखे गए ग्रंथो को आगम नही कहा जा सकता है। धर्म ग्रंथो के अर्थ को सही सही निकालना चाहिए शब्दो को तोड़ फोड़ कर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए अर्थ नहीं निकालना चाहिए। आचार्य ने कहा ज्ञान अनंत है,पदार्थ अनंत है, शब्दो का अर्थ अलग अलग होते है। एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते है। जबकि शब्द संख्यात है। इसलिए प्रसंग के अनुसार अर्थ निकालना जाता है। धर्म गर्न्थो के अलग अलग अर्थ निकालने से अनेक मत मतांतर धर्म और सम्प्रदाय इस दुनिया में उत्पन्न हो गए है, अर्थ का अनर्थ न निकाले। अर्थ का अनर्थ निकालने से विवाद पैदा होते है। तत्व का निर्णय करना और धर्म का सही स्वरूप समझने के लिए सभी धर्म ग्रंथो का ज्ञान करना चाहिए।
  संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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