राजनीतिक हलचल: कमलनाथ उपचुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर सरकार में वापसी की एक और कोशिश कर रहे हैं. लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के रवैये से राह मुश्किल होती जा रही है I ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती ग्वालियर-अंचल में जीताऊ उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने की है. इस चुनौती से निपटने के लिए कमलनाथ इसी बीच पार्टी नेताओं से लगातार संवाद स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद अंचल में उभरे नए राजनीतिक समीकरण भी कमलनाथ की परेशानी की वजह हैं. I
सिंधिया के गढ़ में सबसे ज्यादा उपचुनाव-
मध्य प्रदेश में पहली बार एक साथ 27 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है. उपचुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे के कारण हो रहे हैं. दो सीटें विधायकों के निधन के कारण खाली हुई हैं. ये सीटें आगर और जौरा की हैं. जौरा विधानसभा क्षेत्र सिंधिया के प्रभाव वाले मुरैना जिले में आता है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर सिंधिया समर्थक बनबारी लाल शर्मा चुनाव जीते थे. कांग्रेस ने हमेशा ही इस सीट पर सिंधिया की पसंद के आधार पर टिकट दिया है. ग्वालियर-चंबल अंचल में जौरा के अलावा चौदह अन्य सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव होना है. सबसे ज्यादा पांच सीटों पर उपचुनाव मुरैना जिले में ही होना है. मुरैना केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का निर्वाचन क्षेत्र भी है I
कांग्रेस के लिए इन सीटों पर मजबूत उम्मीदवार तलाश करना काफी चुनौतीपूर्ण है. पिछले चार दशक से कांग्रेस इस क्षेत्र में टिकटों का वितरण महल की पंसद के आधार पर करती रही है. अंचल में पहली बार कांग्रेस सिंधिया राज परिवार के बगैर चुनाव मैदान होगी. इससे पूर्व एक बार माधवराव सिंधिया ने भी कांग्रेस छोड़ी थी. पीवी नरसिंहाराव उस वक्त प्रधानमंत्री थे. लेकिन, उस दौरान विधानसभा का कोई चुनाव नहीं हुआ था. सिर्फ लोकसभा का ही चुनाव हुआ था. सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने का फायदा भारतीय जनता पार्टी ने उठाया था. इस बार पूरा सिंधिया राज परिवार एक साथ भारतीय जनता पार्टी में है. ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया शिवपुरी से विधायक हैं. शिवपुरी जिले में दो विधानसभा क्षेत्र करैरा और पोहरी में उपचुनाव होना है. बुआ और भतीजे के एक ही दल में होने के कारण इस बार महल समर्थकों के बीच चुनाव को लेकर किसी तरह के भ्रम की स्थिति नहीं है.
सिंधिया को घेरने विरोधियों को मिल रहा महत्व-ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने से सबसे ज्यादा खुश वे नेता हैं, जो पिछले चार दशक से पार्टी में महल विरोधी राजनीति कर रहे हैं. सिंधिया को घेरने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ महल विरोधी नेताओं से सलाह-मशवरा भी कर रहे हैं. सिंधिया के प्रभाव वाले जिलों में कांग्रेस के नए अध्यक्ष नियुक्त भी कर दिए हैं. . अशोक सिंह के कारण कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच दूरी बननी शुरू हुई थी. अशोक सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं. दिग्विजय सिंह की अनुशंसा पर ही कमलनाथ ने अशोक सिंह को मध्य प्रदेश राज्य सहकारी बैंक का अध्यक्ष बनाया था. शिवपुरी में कट्टर विरोधी श्रीप्रकाश शर्मा को जिला अध्यक्ष बनाया गया है. श्योपुर और गुना जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बदल दिए गए हैं. सिंधिया के गढ़ शिवपुरी के नवनियुक्त जिला अध्यक्ष श्रीप्रकाश शर्मा कहते हैं कि यदि यह उनका गढ़ होता तो लोकसभा का चुनाव वे नहीं हारते.
