मन, वचन, काया से जीवन में जितने भी प्रदूषण फैला रहे है, उन्हे साफ करने का पर्व है पर्युषण उत्तम सागर जी

  मुंगावली- मुनि श्री उत्तम सागर जी महाराज ने अपने उदबोधन मे कहा पर्युषण का अर्थ मन, वचन, काया के द्वारा जीवन के आँगन मे जितना भी पाप प्रदूषण फैला है उसे साफ करने का पर्व है पर्युषण। इसके दस भेद है क्षमा,मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, त्याग, आकिंचन, और ब्रहचर्य इन्हे दस लक्षण भी कहते है। ये सब महाविलक्षण होते है इसीलिए इन्हे उत्तम शब्द लगाकर बोलते हैं।
       मुनि श्री ने कहा ये दस धर्म हर आत्मा के गुण रूप मे विधमान है। इन्हे प्राप्त करने की विधि इस दस लक्षण पर्व में दस दिवस में सिखाया जाता है। इसकी शुरुआत क्षमा धर्म से होती है। जो पूरे दस दिनो तक अलग अलग धर्म हमे जीवन में कुछ सीखने को मिलते है और अंत में ब्रह्मचर्य होता है। इसी तरह श्रावक को दस धर्म का लाभ बताया गया है जिस तरह दसलक्षण की शुरुआत क्षमा से होती है जिस तरह क्रोध आने पर मनुष्य आपे से बाहर हो जाता है  और शक्ति, भक्ति, युक्ति, प्रगति, मति, गति, धन, दौलत, घर, परिवार यहां तक अपना सारा जीवन क्रोध और प्रतिशोध से बर्बाद कर देता है। क्रोध को किस तरह काबू पाना चाहिए यह हमे ग्रन्थों और सन्तो से सुनने मिलता है।
   सुबह से शाम तक हम  धरती को कितने कष्ट देते है मगर धरती माता हमे नादान समझकर हमारी सारी गलतियो को माफ कर देती है। इसिलए हम सभी भी क्षमा भाव होना जरूरी है।
      संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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