पोहरी: पोहरी विधानसभा में होने वाले उपचुनाव में भाजपा ,कांग्रेस के अलावा बसपा भी मैदान में है, उपचुनावों के इतिहास पर नज़र डाली जाए तो बसपा ज्यादातर उपचुनाव से बाहर ही रही है लेकिन इस बार चूँकि एक साथ 28 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हो रहे हैं और 2018 के आम चुनाव में ग्वालियर अंचल में कई सीटों पर बसपा न केवल पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ी थी बल्कि भाजपा को चुनौती देकर दूसरे स्थान पर भी रही,और अब इसी उम्मीद और अपने बढ़ते जनाधार के साथ एक बार फिर मैदान में है,बसपा के मैदान में आने से भाजपा और कांग्रेस दोनों का ही चुनावी गणित फैल हो गया है ।
पोहरी विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस व भाजपा त्रिकोणीय मुकाबले में उलझी हैं। यहां बसपा ने पूर्व प्रत्याशी कैलाश कुशवाह को चुनाव मैदान में उतार दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों का चुनावी गणित गड़बड़ा दिया है। यही कारण है कि मतदान से पूर्व क्षेत्र में चुनावी तस्वीर साफ नहीं हो पाई है।
आम चुनाव के ठीक डेढ़ साल बाद पोहरी में हो रहे विधानसभा चुनाव से कांग्रेस, भाजपा व बसपा की प्रतिष्ठा जुड़ी है। विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में यह पहला बड़ा उपचुनाव है। इस उपचुनाव के परिणाम विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में बन रहे राजनीतिक परिदृश्य का परिचायक होंगे। यही कारण है कि राजनीतिक क्षेत्र में पोहरी उपचुनाव को मध्यप्रदेश की राजनीति में भाजपा का फ्लोर टेस्ट और कांग्रेस का सत्ता में लौटने का दांव माना जा रहा है।
बसपा की सेंध ने बढ़ाई चिंता-पोहरी में प्रमुख दलों की चिंता बसपा की रणनीति ने बढ़ा दी है। ज्यादातर बार यहां चुनावी मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच रहा। इस कारण कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा जीत दर्ज कराती रही। यही कारण है कि यहां की राजनीति भी दो धु्रवीय रही। इस बार बसपा ने पूर्व प्रत्याशी कैलाश कुशवाह को पोहरी से बसपा प्रत्याशी बनाकर क्षेत्र में नई राजनीति की शुरुआत की है। पहली बार क्षेत्र में बसपा की दमदार मौजूदगी 2018 में हुई,जब बसपा ने और तब के कांग्रेसी और अब भाजपा प्रत्याशी सुरेश धाकड़ भी कम अंतर से अपनी जीत दर्ज करने में कामयाब हो पाए थे,बसपा ने दोनों ही प्रमुख दलों को अपनी चुनावी रणनीति बदलने को मजबूर कर दिया। चुनाव प्रचार में फूंक फूंक कर कदम रखने के बाद भी कांग्रेस व भाजपा की चिंता अभी पूरी तरह खत्म नहीं हो सकी है।
