चिंता को चिंतन मे परिवर्तित करो पुलक सागर जी

 बांसवाड़ा -बाहुबली कॉलोनी दिगम्बर जैन मंदिर मे आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि मन में दूषित विचार की लहर उठते ही उसकी दिशा को बदल दीजिए, नही तो भीतर की दिव्यता और पवित्रता खण्डित हो जाएगी। चिंता के कही रूप होते है। कुछ चिंताए ऐसी होती है जो नीचे की और ले जाती है, तो कुछ चिंताए पतन की और ले जाती है। उन्होंने कहा चिंता के फिर दो भेद करो एक आवश्यक चिंता, दूसरी अनावश्यक चिंता व्यापार और घर की चिंता करना नितान्त आवश्यक है, लेकिन अनावश्यक चिन्ता करने से जिंदगी बिगड़ जाती है। अनावश्यक चिंताए पतन का कारण है। निमित्त मिलते है और कारण बनते है। जिसप्रकार भगवान नेमिनाथ की चिंता की धारा चिंतन में चली गई, वैसे ही आप अपनी चिंता को चिंतन मे परिवर्तित करो। भीतर की श्रद्धा विष को अम्रत बना देती है और मृत्यु की शैय्या से भी उठकर आ जाता है। अगर आपका प्रेमी है और श्रद्धालु है तो वह आपको प्रेम देगा और अगर श्रद्धालुनही है तो वह आपको गाली भी दे सकता है।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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