पैसा मंजिल तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों के समान है मंजिल नहींआचार्य

दमोह-वैज्ञानिक संत आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज के सानिध्य में  पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव 10 फरवरी से 18 फरवरी तक संपन्न होने जा रहा  है। जिसकी तैयारियां प्रारंभ हो गई हैं। पॉलिटेक्निक कॉलेज ग्राउंड में  वेदी बनना प्रारंभ हो गई है। कार्यक्रम करने वाली समिति आचार्य श्री के साथ  प्रतिदिन वहां निरीक्षण करने पहुंचती है। उसके बाद प्रतिदिन मंगल प्रवचन  सुबह 9 बजे से होते हैं। आचार्य श्री ने मंगल प्रवचन करते हुए कहा न पैसा  साथ जाता है न शरीर साथ जाता है न पत्नी बच्चे साथ जाते हैं यदि कोई अपने  साथ जाता है तो अपना किया गया पाप और पुण्य रूपी कर्म। आप कमाई और बाप कमाई  दोनों में अंतर बताते हुए आचार्य श्री ने कहा जो भाग्य से मिलता है वह बाप  कमाई है और जो पुरुषार्थ से मिलता है वह आप कमाई है। आप कमाई के धन को  व्यक्ति हिसाब से खर्च करता है और बाप कमाई को वे हिसाब खर्च करता है।  भाग्य से मिला हुआ पैसा पुण्य का कहलाता है और मेहनत करके प्राप्त किया गया  पैसा पुरुषार्थ का कहलाता है। यदि पैसे का उपयोग होता है तो वह कार्यकारी  है सुखदायक है महत्वपूर्ण है उपयोगी हीन पैसा कचरे के समान व्यर्थ है  इसीलिए पैसे का उपयोग होना चाहिए। न्याय नीति से कमाया गया धन परोपकार में  लगता है और उससे पुण्य संग्रह होता है वह पुण्य जीव आत्मा के साथ अगले भव  तक साथ जाता है। इसलिए इस भाव का धन वैभव साथ ले जाने के लिए उसका उपभोग न  करके परोपकार में लगाकर उपयोग करना चाहिए। अन्याय अनीति पूर्वक दान देने के  लिए कमाए गए धन से पुण्य नहीं मिलता। पैसा जीवन जीने के लिए साध्य नहीं  साधन है पैसा जीवन में आवश्यक है अनिवार्य नहीं, क्योंकि साधु संत बिना  पैसे के भी जीवन जी रहे। पैसा मंजिल तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों के समान है  मंजिल नहीं। सारा संसार चलायमान सिर्फ एक धर्म ही निश्चल है धर्म की शरण  में जाने से धन संपदा सुख वैभव शांति सब कुछ प्राप्त हो जाता है इसीलिए  धर्म का उपदेश दिया जाता है और जीवन में धर्म अनिवार्य होता है।
            संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.