शिक्षा पद्धति को भारत की आत्मा से जोड़ना होगा मुनि श्री

आष्टा-भाषाई स्वतन्त्रता के बगैर किसी देश को पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता। किसी भी भाषा का विरोध नहीं किया जाना चाहिए पर शिक्षा क्षेत्रीय अथवा मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। व्यक्ति, परिवार, धर्म, समाज और राष्ट्र के विकास में शिक्षा का महत्व है। इस उद्देश्य की प्राप्ति स्व भाषा को अपना कर ही की जा सकती है। आज शिक्षा पर बाजारवाद हावी है। नैतिक मूल्य शिक्षा से लुप्त हो गए हैं। औपचारिक शिक्षा सिर्फ भीड़ या भेड़चाल की तरह हो गई है। कागजी परिणाम की चाह में तनाव ग्रस्त विद्यार्थी अपनी सांस्कृतिक जड़ों और गौरवशाली अतीत से कट रहे हैं।
यह बातें आचार्य श्री  विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनि श्री सम्भव सागरजी महाराज ने जैन मंदिर किला के सभागार में शिक्षा और भारत वर्ष विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मौजूद शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहीं। मुनिश्री ने कहा कि भारत में लार्ड मैकाले की वर्तमान शिक्षा नीति अंग्रेजों के कुचक्र से अधिक कुछ नहीं। इस पद्धति में चिंतन की बजाए रटने पर विद्यार्थी का जोर रहता है। भारत में शिक्षा पद्धति को भारत की आत्मा से जोड़ना होगा तभी हम अपनी संस्कृति और गौरवशाली अतीत को बचा सकेंगे।
गुलामी के संस्कार भारत पर हावी: मुनिश्री ने कहा कि हमारे शासन, प्रशासन और न्याय व्यवस्था पर अंग्रेजियत का प्रभाव अभी भी दिखाई देता है। अंग्रेजों की यह नीति थी कि वो गुलाम राष्ट्रों की मूल व्यवस्थाओं को चौपट कर देते थे, गुलामी के यही संस्कार आज भी भारत पर हावी हैं।
मुनिश्री काे शास्त्र भेंट किए
कार्यक्रम के आरम्भ में दीप प्रज्ज्वलन व आचार्यश्री के चित्र का अनावरण पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार, बीआरसी अजब सिंह राजपूत, शास्त्री स्कूल के प्राचार्य प्रेम नारायण शर्मा, समाजसेवी रामेश्वर खण्डेलवाल, कवि गोविंद शर्मा, दिगम्बर जैन समाज के संरक्षक मनोज पोरवाल, महामंत्री कैलाश जैन, पंकज अष्टपगा ने किया। मुनिश्री को शास्त्र भेंट किए। श्वेतांबर जैन समाज के अध्यक्ष पारसमल सिंघी, सुनील प्रगति व सदस्यों ने भी श्रीफल अर्पित किए।
              संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया  रामगंजमंडी

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