सतना-संसार में जितने भी प्राणी है वे किसी न किसी प्रकार से दुखी है। सबका अपना अपना दुख है। यदि हम जीवन के दुख से छुटकारा चाहते है तो हमे उन कारणों को जानना पड़ेगा। जिससे हम दुखी है और इनमे से एक दुख है कल्पनाजन्य दुख, दूसरा है अभावजन्य दुख तीसरा है वियोगजन्य दुख और चौथा है परिस्थिति जन्य दुख मतलब अज्ञान से दुख है, ज्ञान में सुख है। यह उदगार मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज पुराना पावर हाउस के सभागार में व्यक्त किए।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमडी
