खिरकिया-सात्विक भोजन व स्वाध्याय करने से नैतिक मूल्यों एवं संस्कारों को बचाया जा सकता है। सभी धर्म स्वीकार करते हैं कि हिंसा पाप है फिर भी देश में मांसाहार कत्लखानों पर प्रतिबंध नहीं लग पाता। गाय में करोड़ों देवताओं का वास माना जाता है फिर भी गाे हत्या रोकने में विफलता ही नजर आती है। यह चिंता का विषय है। सभी ग्रंथों में लिखा है जैसा खाए अन्न वैसा होय मन। यह उद्गार मुनि श्री भूतबलि सागर जी मुनिराज ने बुधवार को अपने प्रवचन के दौरान कहे। उन्होंने रात्रि भोजन के त्याग का वैज्ञानिक पक्ष रखते हुए कहा कि रात्रि में अनेक प्रकार के जीव भोजन में गिरते हैं, जो हमें चाहते हुए भी मांसाहारी बना देते हैं। इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से रात्रि भोजन का त्याग ही श्रेष्ठ है। ग्रंथों में गृहस्थों के लिए धर्म, अर्थ और काम तीनों का संतुलन बनाकर जीवन को व्यवस्थित करने की प्रेरणा दी है। इन तीनों के बिना मनुष्य का जीवन पशु के समान है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी
