मंदिरों में दर्शन किए पर धर्म का मर्म नहीं जाना गुणसागर जी महाराज


गुना-हम संसार के भोगो में उलझे हैं, आचार्यों ने आत्मा का जो स्वरूप बताया हैं, उसका भान हमें नहीं हैं। संसार में यह जीव अनादिकाल से भटक रहा हैं। काम, भोग, विलास में वह उलझा हैं इसलिए आत्मा के मनन करने का समय ही उसके पास नहीं हैं। मंदिर आते भी हैं तो सिर्फ दर्शन कर चले गए, लेकिन धर्म का मर्म कभी नही जाना। देव दर्शन, पूजा, स्वाध्याय, गुरु भक्ति, दान आदि श्रावक के प्रमुख दायित्व हैं। धर्म के साथ सुखी रहे, धर्म कभी न छोड़े, तभी मानव पर्याय सफल हो पाएगा। उक्त धर्मोपदेश मुनिश्री गुण सागरजी महाराज ने त्रिमूर्ति कॉलोनी स्थित चंद्रप्रभु जिनालय पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
आचार्यश्री वर्धमान सागरजी महाराज, नगर गौरव गुण सागरजी महाराज सहित ससंघ मुनिराजों ने सोमवार को चंद्रप्रभु जिनालय पहुंचकर दर्शन किए। इस मौके पर आयोजित प्रवचनों के दौरान मुनिश्री गुण सागरजी महाराज ने चंद्रप्रभु जिनालय की जब नींव रखी जा रही थी तब के संस्मरण सुनाएं। मुनिश्री ने कहा कि यह मंदिर हमारी आधारशिला है। इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए 
जो निष्काम पूजा करता है उसकी भव भावांतर में पूजा होती है वर्धमान सागर जी
आचार्यश्री वर्धमान सागरजी महाराज ने कहा कि हम भगवान की जो पूजा करते हैं वह निष्काम होना चाहिए। जो निष्काम पूजा करता है उसकी भव भावांतर में पूजा होती है। भगवान कभी राजा थे, लेकिन उन्होंने सब राजपाट छोड़कर दीक्षा लेकर तप किया। आचार्यश्री ने कहा कि संसार में किसी से डरना है तो पाप से डरो। सत्य और अच्छे कामों से लिए कभी मत डरो। जो डरपोक होता है उसके साथ कभी यश नहीं रहता। जो गलती नही करे उसे भगवान कहते है, जो गलती कर सुधरे उसे इंसान कहते है और जो गलती पर गलती करे उस शैतान कहते हैं। इस दौरान आचार्यश्री ने कहा कि इस संसार में मोह ही दुख का सबसे बड़ा कारण है, इसलिए हमें मोह को छोड़ना चाहिए।
              संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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