सागर -अनुकंपा का भाव हमेशा दूसरों के लिए होना चाहिए। पशुओं का कर्म उदय है। पशुओं का पालन कर हम अपने जीवन को उन्नति की ओर ले जा सकते हैं। हम ऐश और आराम का जीवन जीते हैं। लेकिन देते कुछ नहीं। जबकि पशु गौशाला में बने चद्दर के शेडों में रहते हैं। भूसा खाते हैं। लेकिन मीठा दूध देते हैं। उनकी दशा देखकर हमारे भीतर भी करुणा होना चाहिए। दर्शन और प्रदर्शन में अंतर है। लेकिन हम दर्शन को कम प्रदर्शन को ज्यादा दिखाते हैं। यह बात मुनिश्री समय सागर जी महाराज ने कही। वे भाग्योदय तीर्थ में रविवारीय प्रवचन दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि आपका जीवन वातानुकूलित घरों में व्यतीत होता है। आपके पास सब कुछ है। डनलप के गद्दे हैं। ठंड में कमरे गर्म करने की व्यवस्था है। फिर भी आप परेशान हैं। मूक पशु बाहर जंगलों में रहते हुए भी खुश हैं।
संकलंन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी