केरल-केरल के मलप्पुरम में रहने वाले 43 साल के सुबिद की पूरी गृहस्थी महज दो बैग में सिमटी हुई है। एक बैग में जरूरत का सामान तो दूसरे में वेस्ट मटेरियल जैसे कागज, प्लास्टिक की बोतलें, सीडी, स्ट्रॉ आदि रखे रहते हैं। सुबिद झोला उठाते हैं और देश में घूम-घूमकर बच्चों को वेस्ट मटेरियल से खिलौने बनाना सिखाते हैं। अपने खिलौनों को ‘अहिंसा टॉयज’ कहते हैं। वह कहते हैं कि कचरा फैलाना, चीज़ों को वेस्ट करना एक तरह से हिंसा ही है। अगर हम अपनी जिंदगी में चीजों को रिसाइकल करना शुरू कर दें तो समस्या ही खत्म हो जाएगी। सुबिद ने बताया कि फिलहाल कार्यशालाएं बंद हैं।सुबिद व्यर्थ सामान से खिलौने बनाते हैं। उन खिलौनों के माध्यम से अहिंसा का पाठ भी पढ़ाते हैं। उन्होंने खुद पहला खिलौना चरखा बनाया था। वह कहते हैं कि खिलौने बच्चों को खुशी देते हैं, ये उनके लिए पहले तोहफों में से एक होते हैं। वह कहते हैं कि अहिंसा खिलौने कई मायनों में चीज़ों का अहिंसक जवाब हैं। इससे सिर्फ व्यर्थ चीज़ें खिलौनों में तब्दील नहीं होती, खाली दिमाग भी रचनात्मक और सकारात्मक कामों में लग जाता है। इससे आत्मविश्वास आता है। सुबिद प्रदशर्नियों, कार्यशालाओं में अपने खिलौने बेचकर जीविका चलाते हैं। वे कहते हैं कि इससे उन्हें स्वतंत्रता मिलती है। सुबिद मौजूदा शिक्षा व्यवस्था से इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं कि सवाल पूछने के बजाय बच्चे जो उन्हें सिखाया जा रहा है, आंख मूंदकर उसे बस सीख रहे हैं और भरोसा कर रहे हैं। वे इस चीज़ को बदलना चाह रहे हैं। बच्चों को खिलौने बनाना सिखाने से ज्यादा वे इस बात पर फोकस करते हैं कि बच्चे सीख कैसे रहे हैं।
आईआईटी से पढ़े, 600 कार्यशालाएं आयोजित कर चुके हैंसुबिद ने आईआईटी दिल्ली से इंडस्ट्रियल डिजाइंस में पोस्ट ग्रैजुएशन किया है। इसके बाद कई नौकरियां कीं। पुणे में 2011 में उनकी मुलाकात देश के विख्यात खिलौना अन्वेषक एवं विज्ञान प्रसारक अरविंद गुप्ता से हुई। अरविंद की वेबसाइट के लिए मलयालम में तीन महीने कंटेंट अनुवादित किया। सुबिद कहते हैं उन तीन महीनों ने उन्हें जिंदगी की नई दिशा दिखाई। वे देशभर में अभी तक 600 से ज्यादा कार्यशालाएं आयोजित कर चुके हैं।
संकलित अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी
