यूँ ही नहीं कहते कि मध्यप्रदेश अजब है, यहां विविध प्रकार के ऐतिहासिक धरोहर हैं तो प्रकृति इसका श्रृंगार करती है, इसे टाइगर स्टेट कहा जाता है तो यहाँ नेताओं को भी ये कहते सुना जा सकता है कि टाइगर अभी जिंदा है । मध्यप्रदेश की जनता के दिल मे बस चुके शिवराज को 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की जनता ने वोट तो खूब दिया लेकिन कुछ सीटों के कारण वे सत्ता से बाहर हो गए, अबकी बार सिंधिया सरकार का नारा जनता के बीच गया तो सबको लगा कि अबकी महाराज ही मध्यप्रदेश के राजा होंगे लेकिन हुआ कुछ और ही, महाराज जनता को जीतने प्यारे थे उतने ही भारतीय जनता पार्टी और शिवराज सिंह चौहान के निशाने पर, माफ करो महाराज ! कहकर भाजपा ने सिंधिया को निशाने पर लिया ।
कहा जाता है कि राजनीति में न तो किसी का कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही दुश्मन ,फिर भला ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के लिए कैसे दुश्मन हो सकते थे, वो बात अलग है कि जिन शिवराज को सत्ता से बाहर प्रदेश की जनता ने कर दिया था और महाराज अपने सिप सलाहकार से सियासत में मात खा चुके थे, दोनों ही सत्ता की तरफ आँख गढ़ाए बैठे थे और मौका पाते ही पाला बदलकर मध्यप्रदेश में एक बार फिर शिव-राज स्थापित हो गया, जिन शिवराज को महाराज ने अपने समर्थकों को साथ लेकर सत्ता के शिखर पर बिठाया था ,उन्ही के खिलाफ 2018 के आम चुनाव में महाराज किसानों की हत्या से सने हुए हाथ कहकर शिवराज को निशाना बनाते, एक साल में कितना कुछ बदला, कभी महाराज की आवभगत मामी साधना सिंह करती हैं तो कभी खुद वीडी शर्मा जी अपने हाथों से महाराज को खाना परोसते हैं, यानी संघ की नर्सरी से निकले शिवराज के खिलाफ जब कुछ अपने ही साजिश रचने लगें तब शिवराज की महाराज से बढ़ती नजदीकियां राजनीतिक गलियारों में चर्चा बढ़ा देती हैं कि संघ के शिवराज महाराज के संग हैं और आने वाले समय मे शिवराज सिंह चौहान प्रधानमंत्री तो ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री । राजनीति में कयास लगाए जाते हैं लेकिन संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है।
