राजनीतिक हलचल - अजब मध्यप्रदेश में गजब की पॉलिटिक्स होती है, कभी व्यापमं कांड तहलका मचा देता है तो कभी भंवरी देवी हत्याकांड भूचाल, कोरोना ने दस्तक दी ही थी कि मध्यप्रदेश में कमलनाथ असुरक्षित महसूस करने लगे थे वो भी कोरोना से नहीं बल्कि विधायकों के बैंगलोर में चले जाने से और वही हुआ जिसका अंदेशा था,सरकार गिरी और फिर आया शिव-राज । विपक्ष की राजनीति करते - करते कमलनाथ क्या कुछ कब बोल जायें पता नहीं, कमलनाथ भले ही पेनड्राइव में कुछ भी छुपाए बैठे हों लेकिन मध्यप्रदेश भाजपा में आजकल बन्द कमरे की राजनीति ने सियासत के गलियारों को नौतपा में तपते माहौल को और भी गर्म कर दिया है ।
गर्म हुई सियासत में सोशल मीडिया पर मध्यप्रदेश भाजपा में तमाम बड़े नेता मुख्यमंत्री पद के दावेदार दिखाई दे रहे हैं, ये दावेदार एक साल पहले सत्ता परिवर्तन के समय भी दिखाई दिए लेकिन कयासों में और कयासों का क्या ,राजनीति है तो कयास तो होंगे ही, कन कयासों पर शिवराज सिंह चौहान की मजबूती और कुशल प्रबंधन पानी फेर देता है और एक बार फिर बंद कमरे में भले ही कुछ भी खिचड़ी पक रही हो लेकिन शिव को ब्रह्मपाश में फंसाने के तमाम प्रयास असफल ही दिखाई देते हैं ।
अभी हाल ही में भाजपा शासित तीन राज्यों उत्तराखंड, हरियाणा, कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन क्या हुआ मध्यप्रदेश के नेताओं के मुँह में पानी आ गया सत्ता की मलाई खाने को , लेकिन ये कोरोना भी ना,सबके अरमानों पर पानी फेर दिया, अब जब कोरोना की दूसरी लहर काबू में आ गई तो एक बार फिर अरमान जागृत हो गए और यही अरमान आजकल मेल मुलाकात के साथ बन्द कमरों में सियासत की खिचड़ी पका रही है । लोकसभा चुनाव में अपने ही मोहरों से हार चुके और सूबे की राजनीति में अपनों से ही ठगे जा चुके महाराज की राजनीतिक लोलुपता ने भाजपा को सत्ता तो दिला दी लेकिन कई सिंधियाई आज भी भाजपाई रंग में नहीं ढल पाए और दमोह चुनाव की हार का जख्म अभी भरा भी नहीं था कि मध्यप्रदेश की क्लोस डोर पॉलिटिक्स न केवल अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर रही है बल्कि भाजपा वनाम भाजपा का संदेश बूथ लेबल तक जा रहा है ।
प्रदेश में सत्ता हारकर भी सत्ता पाने के बाद चिंतन मंथन और प्रयास विकास के लिए होने चाहिए थे लेकिन बंद कमरे के कयास तो नरेंद्र सिंह तोमर,ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीडी शर्मा, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, प्रहलाद पटेल और उमा भारती को भावी मुख्यमंत्री बनाने की खबर दे रहे हैं । यहाँ सोचने वाली बात तो ये है जब मुख्यमंत्री बदलना ही था तो मुख्यमंत्री तब बदला जाता जब सत्ता परिवर्तन हुआ था, लेकिन इन दावेदारों में शिवराज सिंह चौहान के मुखर अपनी आवाज उठाने वाला कोई दिखाई नहीं देता , केंद्रीय नेतृत्व जनता है कि मध्यप्रदेश भाजपा में नेतृत्व के लिए शिवराज सिंह चौहान का कोई विकल्प नहीं इसलिए मुख्यमंत्री बदलने के कयास अंधेरे में तीर चलाने जैसा है कि निशाने पर लग जाए तो ठीक नहीं तो प्रेशर पॉलिटिक्स का नाम मिल ही जायेगा, लेकिन प्रेशर पॉलिटिक्स क्यों, सबके पास पद, सत्ता और संगठन की जिम्मेदारी है फिर निगाहें श्यामला हिल्स पर क्यों ?
इन दावेदारों में नरेंद्र सिंह तोमर तो दो बार प्रदेश भाजपा का नेतृत्व कर चुके हैं और अब न केवल कद्दावर मंत्री हैं बल्कि मोदी की किचिन कैबिनेट का हिस्सा भी है, कैलाश विजयवर्गीय को बंगाल जीतकर कुछ बड़ा इनाम मिलता जैसे उत्तरप्रदेश जीतकर अमित शाह को मिला था लेकिन बंगाल की हार ने विजयवर्गीय के माथे पर राजनीतिक भविष्य की चिंता की लकीरें खींच दी और यही चिंता बंद कमरे की राजनीति कर रही है, लेकिन क्या हासिल होगा ये तो भविष्य के गर्त में है । दिग्गी जैसे राजनीति के चाण्क्य को मध्यप्रदेश से उखाड़कर मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का परचम लहराने वाली साध्वी उमा भारती अपने राजनैतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रयासरत हैं और वही हाल प्रहलाद पटेल का दिखाई देता है क्योंकि दमोह उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी की हार ने प्रहलाद पटेल के जनाधार पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है ।
वीडी शर्मा संघ की नर्सरी से निकले हैं तभी तो भाजपा की कमान संभाले हुए हैं लेकिन दो साल में ही वीडी शर्मा के अरमान और भी जाग गए लेकिन खुलकर अपनी चाहत का इजहार नहीं कर पा रहे हैं, मध्यप्रदेश भाजपा के संकटमोचक कहे जाने वाले और प्रदेश सरकार के नम्बर दो की पोजीशन वाले डॉ नरोत्तम मिश्रा तो लंबे समय से अरमान पाले हुए हैं और राजनीतिक पंडितों की माने तो कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद उन पर सहमति बन भी सकती थी, उस समय कयास थे कि शिव को ब्रह्मपाश में फाँसने की कोशिश की जा रही है और फिर राजनीति में संभावनाओं का अंत नहीं होता, नरेंद्र सिंह तोमर भले ही केंद्र की राजनीति में मजबूत दिखाई देते हो लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान ग्रह क्षेत्र ग्वालियर में विरोध हुआ तो एक बार फिर मुरैना का रुख किया और किसान आंदोलन के बाद तो अपने संसदीय क्षेत्र में भी विरोध का सामना कर आए, राजनीतिक जानकारों के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद नरेंद्र सिंह तोमर कुछ कमजोर दिखाई देते हैं क्योंकि उनके अंचल से प्रदेश सरकार में सिंधियाई मंत्रियों की संख्या अधिक है । राजनीति है और राजनीति में हर रोज नए कयास जन्म लेते हैं और फिर राजनीति में संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता लेकिन फिलहाल तो मुख्यमंत्री बनना मुंगेरीलाल के सपने जैसा है ।
( ये लेखक के अपने निजी विचार हैं )
इंजी. वीरबल सिंह धाकड़ लेखक,कवि एवं पत्रकार )
