मंदिर में अहंकार लेकर नहीं विनम्रता के साथ जाएं : आर्यिकाश्री

हटा-आने वाली पीढ़ी आपको तभी मंदिर के द्वार ले जाएगी जब आप आज अपने साथ अपने बच्‍चों को मंदिर ले जाएगें, जब बच्‍चों के हाथ में मंगल कलश होगा, भगवान का अभिषेक करेंगे तो बचपन के संस्‍कार ही उसे नशा व्यसन से दूर रखेगें। मंदिर केवल श्रद्धा व आस्था का केंद्र नहीं बल्कि संस्‍कार प्रदान करता है। यह बात आर्यिकाश्री गुणमति माता ने श्रीआदिनाथ दिगंबर त्रिमूर्ति मंदिर में श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान में अपने मंगल प्रवचन में कही, आर्यिका श्री ने कहा कि भगवान को धन्यवाद ज्ञापित करें कि आज का दर्शन आज का दिन मंगलमय रहा कल का सूरज भी दिखा देना वरना यही मेरा अंतिम दर्शन, प्रणाम स्‍वीकार करो। उन्होंने कहा कि मंदिर ही मोक्ष मार्ग की ओर ले जाता है, जब भी मंदिर जाओ तो पांचों पाप का त्याग करके मंदिर जाना चाहिए, मंदिर में अहंकार को लेकर नहीं वरन नम्रता, विनम्रता के साथ दर्शन करना चाहिए। अहंकार का स्‍थान तो वहां है जहां जूते चप्पल रखे जाते हैं, मंदिर के वस्त्र शुद्ध साफ होना चाहिए। कोई अनुष्ठान हो तो केसरिया वस्त्र पहने, सफेद वस्त्र शांति व सत्‍य का प्रतीक होता है, यदि आप भड़कीले वस्त्र पहनकर मंदिर जा रहे और आपके वस्त्रों को देखकर दूसरों के मन में विकार उत्पन्न हो रहे तो आप भी उस पाप के भागीदारी हैं‍ जिन वस्त्रों को देख उसके मन में विकार आए हैं।
         संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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