सागर -श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर प्रांगण नेहानगर में चल रहे श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के दूसरे दिन आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की शिष्या आर्यिका अनंतमति माताजी ने कहा कि जीव संवेदनाओं का पिंड है। संवेदनाएं जब अंतर्मुखी हो जाती है तो वे जीवन को उत्थान की ओर ले जाती है। जब संवेदनाएं अपनी गति बाहर की ओर करने लगती है तो जीव का पतन प्रारंभ हो जाता है। प्राणी उत्थान की अंतिम चरम सीमा सिद्धत्व को प्राप्त करने के लिए यदि प्रयास करें तो निश्चित तौर पर अपना जीवन सुखी बना सकता है। श्री सिद्धचक्र विधान का मतलब यह होता है कि सिद्ध भगवान के गुणों के समूह को आत्मसात कर लेना और जब उनके गुणों को हम आत्मसात करते है तो हमारे अंदर के दोष समाप्त जाते है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी
