घाटोल-कस्बे में स्थित जैन में मंदिर में चातुर्मासरत मुनिश्री शुद्धसागरजी महराज ने कहा कि है जीव यदि तुझे बोध को प्राप्त करना है तो बोध की प्राप्ति तब होगी जब अपने मस्तिष्क को खाली करेगा जब मस्तिष्क खाली नही होगा तो बोध की प्रप्ति नही होगी। अज्ञानी जगत में कोई होता नहीं, आप भी ज्ञानी है, अपने ने मस्तिष्क में जो अन्य अनुपयोगी भर रखा उसको थोड़ा खाली करो। उसको थोड़ा समय दो मस्तिष्क में अगर सम्यक बोध जगाना है, सम्यक ज्ञान लाना है एक बार जीवन में फ्री होकर बैठो और फ्री होकर तत्व का निर्णय करो कि सत्य क्या है, और असत्य क्या है। भीड़ में सत्य नहीं दिखता, शोर में सत्य नहीं दिखता। सत्य तो वहीं दिखता है जहां हलचल समाप्त हो जाती है। वहीं पर सत्य के दर्शन होते हैं। संसार मे सबसे पाने योग्य वस्तु है और सबसे जटिल है वह सत्य ही है। सत्ता होने से कल्याण नहीं होगा राजा हरीश चंद्र को देख लें, सत्ता थी पर सत्य को नहीं छोड़ा अगर थोड़ा सा भी असत्य का सहारा ले लेते तो राजगद्दी पर बैठे रहते। लेकिन लेकिन उन्होंने असत्य का सहारा नहीं लेकर सत्य का सहारा लिया गद्दी छूट गई सत्य के मार्ग पर चलकर गद्दी छोड़ना भी अच्छा था। इतने सारे राजाओं में जब सत्य की बात याद आती है उनका नाम लिया जाता है। जिनके जीवन में सत्य मर चुका है देव शास्त्र गुरु की श्रद्धा मर चुकी है वह व्यक्ति जिंदा रहते हुए भी मरे के समान हे जिसके पास सत्य है वह अभी भी जिंदा है बोल देना और सुन लेना आसान है लेकिन उनको आचरण में लाना उतना ही कठिन है। हम कितना सत्यमय जीवन जी रहे है या ढोंग का जीवन जी रहे है या तो स्वयं जानते है या परमात्मा जानता है
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी