परोपकार जरूरी पर स्वउपकार के बाद- प्रणम्य सागर जी


 आगरा, -पार्श्व कथा के दौरान भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व भव आनन्द राजा का वर्णन करते हुये, मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज  ने बताया कि प्रतिमा की पूजा, दर्शन, विधान  भगवान को खुश करने के लिये नहीं, बल्कि अपनी स्वयं के उत्थान के लिये करे जाते हैं। अत: दूसरो का उपकार जरूर करो लेकिन अपने स्वयं के लिये समय जरूर निकालो। उन्होने कहा मन्त्रों मे जबरदस्त शक्ती होती है परन्तु तभी जब उनमे विश्वास हो। आज सूरज और चन्द्र्मा को लोगो ने अपने अपने धर्म के अनुसार बांट लिये है, परन्तु जैन दर्शन के अनुसार तो दोनो मे ही पूज्यनीय जिन बिम्ब हैं, अत: जैन तो दोनो का ही सम्मान करते हैं।
 उन्होंने उपदेश दिया  कि जब गुरू सामने हों तो उनकी सेवा, प्रवचन ही पूजा है। व्यक्ती को यह सीखना चाहिए कि कब किसे मुख्यता दे और किसे गौणता। यह सब बाते श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, हरीपर्वत आगरा के ग्राउण्ड मे आयोजित प्रात: कालीन सभा मे मुनि श्री ने कही।       
 आज की कथा के पुण्यार्जक नाई की मंडी व नार्थ ईदगाह कोलोनी शैली रहे। पाद प्रक्षालन श्री सुरेन्द्र बैनाडा परिवार व आरती श्री हीरालाल बैनाडा परिवार द्वारा किया गया।कार्यक्रम का मंगलाचरण श्री राजेश बैनाडा ने किया। चित्र अनावरण श्री निरन्जन लाल बैनाडा, निर्मल मोठ्या, अजित रांवका, प्रमोद रांवका,अनिल मोठ्या ने किया,और दीप प्रज्वलन श्री राजेश सेठी, अशोक जैन, अजय जैन, जे के जैन आदि ने किया।
  सभा मे पधारे अतिथियों का स्वागत आगरा दिगम्बर 
  जैन परिषद के महामन्त्री सुनील जैन ठेकेदार ने किया। संचालन मनोज कुमार जैन कमलानगर ने किया। महाराज जी के सानिध्य मे नित्य युवक, युवतीयों के लिये ध्यान एवं योग सेशन चलता है, व नित्य प्रात: 8.30 से पार्श्व कथा प्रारम्भ होती है।
      संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमडी

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