अपर सत्र न्यायालय ने निचली अदालत का फैसला रखा बरकरार, तेज रफ्तार वाहन चलाकर बालक की मृत्यु कारित की थी


जबलपुर,-न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश पाटन, जिला जबलपुर के समक्ष तत्कालीन श्री विवेक शिवहरे न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम  श्रेणी पाटन, जिला जबलपुर के द्वारा दाण्डिक प्रकरण क्रमांक 70/2007 आरोपी घोपत सिंह में पारित निर्णय दिनांक 26/12/2017 से व्यथित होकर अपील प्रस्तुत की गई जिसके द्वारा अपीलकर्ता/अभियुक्त को धारा 304ए भादवि में 1 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी। 
मामलें का विवरण इस प्रकार था, दिनांक 28/04/2007 को फरियादी गोपाल प्रसाद के पुत्र टीकाराम की शादी हुई थी और दिनांक 29/04/2007 को बारात वापस ग्राम जुगपुरा आई थी और टाटा 207 लोडिंग वाहन क्रमांक एमपी 20 जीए 0829 से बारात का सामान ग्राम पावला का रहने वाला अभियुक्त ग्राम जुगपुरा लाया था और जब वह बारात का सामान खाली करके वापस जा रहा था तो ग्राम जुगपुरा में स्कूल के पास फरियादी गोपाल प्रसाद के रिश्तेदारों के बच्चे खेल रहे थे और उस दौरान दिन के लगभग 01:00 बजे अभियुक्त ने उस स्कूल के पास उक्त वाहन को तेज गति से व लापरवाही से चलाते हुए फरियादी गोपाल प्रसाद के साले हाकम मल्लाह के 8 वर्षीय पुत्र दौलत को टक्कर मार दी जिससे दौलत के सिर में चोट आई। घटना को सिम्मा बाई, कुंती बाई और फरियादी गोपाल प्रसाद ने देखी थी। दौलत को इलाज हेतु अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में मृत्यु हो गई थी। थाना बेलखेडा में रिपोर्ट लेख करायी। जिस पर थाना बेलखेडा के अपराध क्रमांक 73/2007 धारा 279/ 304ए  भादवि का मामला पंजीबध्द कर विवेचना में लिया गया था।  जिला अभियोजन अधिकारी श्री अजय कुमार जैन के मार्गदर्शन में अभियोजन की ओर से श्री संदीप जैन सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी के द्वारा मामले में  सशक्त पैरवी की गई और अपील निरस्त करने हेतु न्यायालय से निवेदन किया गया। 
अभियोजन के तर्को से सहमत होते हुए माननीय न्यायालय श्रीमान विवेक कुमार अपर सत्र न्यायाधीश पाटन जिला जबलपुर द्वारा कहा गया कि अपीलकर्ता पर अपने आधिपत्य के वाहन को सुरक्षात्मक तरीके से चलाये जाने का उत्तरदायित्व था ताकि जन-धन की हानि न हो किन्तु आरोपी ने अपने उक्त उत्तरदायित्व के प्रति उपेक्षा बरतते हुए उपेक्षापूर्ण एवं उतावलेपन से वाहन चलाया जिसके परिणामस्वरूप 08 वर्षीय बालक दौलत की मृत्यु हुई। ऐसी स्थिति में अपील कर्ता द्वारा अपराध की प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुए उसे परिवीक्षा अधिनियम के प्रावधानों का लाभ दिया जाना एवं केवल अर्थदंड से दंडित किया जाना न्यायोचित नहीं है। विचारण न्यायालय द्वारा अपीलकर्ता को जिस दण्ड से दंडित किया गया था उसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। अतः अपीलकर्ता द्वारा की गई अपील निरस्त की जाती है। 



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