अंदेश्वर पार्श्वनाथ -अंदेश्वर तीर्थ क्षेत्र पार्श्वनाथ में विराजित आचार्य सुनील सागरजी ने कहा कि जो अपने जीवन का मोल समझते हैं, वहीं दूसरों के जीवन का मोल समझते हैं। उन्होंने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक बार कोल्हापुर में आचार्य भगवान सन्मति सागरजी के पास एक राजा सेठ आए। उन्होंने नमस्कार किया। आचार्यश्री ने एक बार तो उनको देखा ही नहीं, उन्होंने दूसरी बार नमस्कार किया, तीसरी बार नमस्कार किया तो आचार्य श्री उनकी ओर देखा और पता चला कि कोई राजा श्रावक है। उसने आचार्यश्री से कहा कि यह जो मेरे हाथों में डायमंड से युक्त ब्रेसलेट है, इसका क्या मूल्य है जो बीचोबीच जड़ा है। महाराजजी मौन रहे, फिर से राजा ने कहा हमारे जीवन का क्या मूल्य है। महाराजजी मौन ही रहे, उस राजा के आग्रह पर आचार्य श्री ने कहा बाजार जाओ इस डायमंड की कीमत पूछ कर आओ। वह बाहर आया, आते ही टमाटर वाले ने कहा आप हमारे पूरी टमाटर की संतरे की टोकरी ले लो, यह ब्रेसलेट हमें दे दो। आगे घी वाले ने कहा हमारी दुकान में जितना भी घी है उतना ले लो पर यह डायमंड जड़ित ब्रेसलेट हमें दे दो। आगे सोने चांदी के व्यापारी थे, उन्होंने कहा हमारे पास जितना सोना है, वह सब ले लो पर यह डायमंड हमें दे दो। आत्मार्थियों जीवन की कीमत भी सभी अपने-अपने हेसियत से वह क्षमता से आंकते हैं। हमारा जीवन अमूल्य है, जो इसे समझे परखे उसी से इसका मूल्यांकन करना, बाकी तो टमाटर संतरे जैसे उसकी कीमत समझते हैं।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
