आचार्य श्री ने प्रवचन में यह कहा*
_आप लोगो ने सुना होगा कि गाय मात्र विशेष ही होते है सामान्य नही। उनके अनेक भेद होते है फिर भी शास्त्रों में उल्लेख किया है की उन्हें कामधेनु कहते है, कामधेनु का अर्थ की आप लोग कामना करेंगे और वह गाय उसको पूर्ण करेगी। संतो को कुछ अपेक्षा नही होती तो झूठ क्यो बोलेंगे? किसी ने यह प्रसंग सुनाया की एक विदेशी महिला है, अपनी गोद मे विणा लेकर बैठी है और जो उससे ध्वनि निकली है। वही समीप में गाय बैठी थी जो उस धुन में मग्न होकर के अपने आप ही दूध देने लगी। आप उसे मार भी लेते हो तो वह दूध नही देती ओर सींग दिखाती है और यदि प्रेम ओर वात्सल्य देंगे तो वह दूध भी अमृत तुल्य आपको देगी क्योंकि उसमें संवेदना है और चेतना है। आप फिर भी उसका उपकार नही मानते है और दूध तो ले लेते है लेकिन उसको खाने के लिए छोड़ देते है, कचरा देते है। बुद्धि मिली है आपको आप सदुपयोग करो, शास्त्रों में जो कामधेनु कहा है उससे सिख लो। भारत मे तो आप बाजा बजाओ तो भी दूध की नदिया बहती थी क्योंकि पशुओं के प्रति संवेदना होती थी। गीता आदि पुराण ग्रंथो के सुनने से भी गाय के दूध में वृद्धि होती है और विदेश में यह अहिंसा के नाम से प्रचलन में आ रहा है। परोपकार की भावना खत्म तो गाय ने भी दूध देना बंद कर दिया। अब तो भारत बाते करता है जैसे पतझड़ में पत्ते मात्र बाते करता है, पत्ते मतलब ताश के पत्ते होते है वो नही। शराब-मांस के लिए अगर सरकार ही छूट दे दे तो देश कैसे तरक्की करेगा। प्रकृति की सब चीज़े प्रकृति में रहती है, आप सदैव एयर कंडीशन में रहते है, आज स्वास हेतु शुद्ध वायु नही, शुद्ध पानी नही एवं इधन भी खत्म। अब तो गैस आ गई है इसीलिए गैस की बिमारी हो रही है, भयानक रोग हो रहे है।_