प्रार्थना का स्वर स्वार्थी नहीं, परमार्थी होना चाहिए : मुनि श्री




अरथूना-कस्बे में चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर में चल रही संत शिरोमणि प्रवचन माला में मंगलवार को मुनि श्री समता सागरजी महाराज  ने कहा कि भक्ति बेकार नहीं साकार होती है। अंदर से निकली आवाज असरदार होती है। प्राणों से झंकृत प्रार्थना ही प्रभु के द्वार तक पहुंचती है। प्रार्थना शब्दों का मेल नहीं मन का मेल धोने का उपाय है। प्रार्थना के स्वर स्वार्थी नही परमार्थी होने चाहिए। प्रार्थना अपने सुख के लिए ही नहीं सबके हित के लिए होनी चाहिए। मुनिश्री ने भक्त को परिभाषित करते हुए कहा कि भक्त का हृदय आकाश की तरह विशाल और पृथ्वी कि तरह उदार होता है। सबके हित में उसका हित होता है। ऐसे दिव्य मुख से निकली प्रार्थना ही साकार होती है।
       संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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