शिवपुरी-शिवपुरी को हार भर करने का सपना अब कुछ हद तक साकार होने लगा है।शिवपुरी पर्यावरण बाबा बृजेश सिंह तोमर ने शिवपूरी सहित आस पास के स्थल को भी हरा भरा बनाने का प्रयास जारी है इस प्रयास के परिणाम भी अब देखने लगे है।दो बत्ती से कुछ आगे कर्बला तक वही नगाड़खाना का सेकड़ो बीघा का क्षेत्र है जहाँ डेढ़ वर्ष पूर्व "मदद बैंक"ने बृहद रूप से बीजारोपण -पौधरोपण किया था।
तस्वीरों में विविधता एक-डेढ वर्ष के छोटे से अंतराल में "मदद बैंक"के प्रयासों की है जो सफल हुये ओर आज हरियाली की एक तस्वीर सबके सामने है...!
हुआ यह कि यह स्थान कभी घने जंगल के रूप में था और इसकी गहराई के बारे में सदैव भ्रम बना रहता था किंतु शने शने देखरेख के अभाव में यह कटता -उजड़ता चला गया।हर वर्ष उन कटे हुए पेड़ो की जड़ो से टहनियों-कोंपलों के रूप में फूटा तो करती थी किंतु पुनः हर बार नई टहनियां भी लकड़हारों द्वारा काट ली जाती थी।स्थिति यहाँ तक आ पहुची थी कि बीजरोपन-पौधरोपण के वक्त बारिश से कुछ माह पहले तीखी धूप में सर छुपाने तक को जगह नही मिलती थी।(अभियान के साथी सेकड़ो लोग इस बात के प्रत्यक्ष साक्षी रहे है...)!*
*उसी समय यह बात भी सामने आई कि नवरोपित बीज-पौधे तो अपना आकार लेंगे ही मगर इस सेकड़ो बीघा जमीन में मौजूद इन्ही हज़ारो-लाखो पेड़ो के अवशेषो को यदि कटने से बचा लिया जाये तो यह जंगल पुनः संरक्षित हो सकता है।वन महकमे से मदद मांगी तो ज्ञात हुआ कि यह भूमि उनकी परिधि में नही है(सम्भवतः राजस्व की है..)*
欄 *"मदद बैंक"ने फिर शुरू किये अपनी क्षमताओं के अनुरूप छोटे से प्रयास...!पत्थरो की बाउंड्री कई स्थानों से टूटी थी जिसे कुछ स्थानों पर कुछ सेवाभावियो द्वारा उठवा भी दिया।सुबह-शाम,दिन-दोपहर मदद बैंक सेवादारो द्वारा लकड़ी काटने बालो की घेराबंदी की गयी..।कभी समझाकर तो कभी वनविभाग-पुलिस विभाग का झूठा डर बिठाकर उन्हें निरन्तर डराया गया (दाग लगने से कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे है न....)!*
*परिणाम अनुकूल आये।लकड़ी काटने बाली महिलाओं में अधिकांशतः एक क्षेत्र विशेष की थी जो डर के कारण आना बंद हो गयी।निरन्तर देख रेख से यह अल्प प्रयास रंग लाने लगे और वर्तमान में यहाँ 6 से 8-10 फिट तक के असंख्य पेड़ तैयार हो गये जो आने वाले दिनों में ही फिर इसे घने जंगल के रूप में परिवर्तित कर देंगे..!*
*बकरी चराने बाले कुछ लोग अब भी यहाँ आ धमकते है जो टहनियों को क्षति पहुचाते है।कई स्थानों पर बाउंड्री टूटी होने से जानवर भी अंदर आ जाते है जिससे अब भी काफी नुकसान होता है।इसके लिये दरकार है प्रशाशनिक मदद की..!यदि पौधरोपण में पोधो को महज हाँथ लगाकर उपकृत कर देने बाले आला तंत्र की इच्छा वास्तव में इस नगरी को पर्यावरण संरक्षण के साथ हरीतिमा से खूबसूरत बनाने की है तो उन्हें अब इस दिशा में आगे आना चाहिये।इस जगह को संरक्षित करने हेतु आवश्यक प्रयास करना चाहिए।महज़ जानवरो की रोकथाम हेतु मोके पर पड़े हुये पत्थरो की टूटे स्थानों पर पुनः दीवार बनाने व देखरेख के लिये चौकीदार नियुक्त करने मात्र से ही यह क्षेत्र पुनः कुछ दिनों में घना जंगल बन जायेगा जो पर्यावरण को संतुलित तो करेगा ही,साथ ही पर्यटक नगरी की खूबसूरती में भी चार चांद लगायेगा...!*
नोट- *सरकारी तंत्र अपनी भूमिका का निर्वहन करेगा क्या,इसका उत्तर वही जाने किन्तु "मदद बैंक"याचक की भूमिका में न रहकर प्रकृति को संवारने के लिये अपने प्रयासों को पूर्ण क्षमता के साथ करता था,है और रहेगा...!यकीनन,माँ वसुंधरा सभी को फल भी सुखद ही देंगी...!*
*साँसे हो रही कम,आओ पौधे बचाये-लगाये हम...!*
एक एक पौधा कीमती है,उसे बचाइये...! सांसो का ऋण चुकाइये....!
तस्वीरों में विविधता एक-डेढ वर्ष के छोटे से अंतराल में "मदद बैंक"के प्रयासों की है जो सफल हुये ओर आज हरियाली की एक तस्वीर सबके सामने है...!
हुआ यह कि यह स्थान कभी घने जंगल के रूप में था और इसकी गहराई के बारे में सदैव भ्रम बना रहता था किंतु शने शने देखरेख के अभाव में यह कटता -उजड़ता चला गया।हर वर्ष उन कटे हुए पेड़ो की जड़ो से टहनियों-कोंपलों के रूप में फूटा तो करती थी किंतु पुनः हर बार नई टहनियां भी लकड़हारों द्वारा काट ली जाती थी।स्थिति यहाँ तक आ पहुची थी कि बीजरोपन-पौधरोपण के वक्त बारिश से कुछ माह पहले तीखी धूप में सर छुपाने तक को जगह नही मिलती थी।(अभियान के साथी सेकड़ो लोग इस बात के प्रत्यक्ष साक्षी रहे है...)!*
*उसी समय यह बात भी सामने आई कि नवरोपित बीज-पौधे तो अपना आकार लेंगे ही मगर इस सेकड़ो बीघा जमीन में मौजूद इन्ही हज़ारो-लाखो पेड़ो के अवशेषो को यदि कटने से बचा लिया जाये तो यह जंगल पुनः संरक्षित हो सकता है।वन महकमे से मदद मांगी तो ज्ञात हुआ कि यह भूमि उनकी परिधि में नही है(सम्भवतः राजस्व की है..)*
欄 *"मदद बैंक"ने फिर शुरू किये अपनी क्षमताओं के अनुरूप छोटे से प्रयास...!पत्थरो की बाउंड्री कई स्थानों से टूटी थी जिसे कुछ स्थानों पर कुछ सेवाभावियो द्वारा उठवा भी दिया।सुबह-शाम,दिन-दोपहर मदद बैंक सेवादारो द्वारा लकड़ी काटने बालो की घेराबंदी की गयी..।कभी समझाकर तो कभी वनविभाग-पुलिस विभाग का झूठा डर बिठाकर उन्हें निरन्तर डराया गया (दाग लगने से कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे है न....)!*
*परिणाम अनुकूल आये।लकड़ी काटने बाली महिलाओं में अधिकांशतः एक क्षेत्र विशेष की थी जो डर के कारण आना बंद हो गयी।निरन्तर देख रेख से यह अल्प प्रयास रंग लाने लगे और वर्तमान में यहाँ 6 से 8-10 फिट तक के असंख्य पेड़ तैयार हो गये जो आने वाले दिनों में ही फिर इसे घने जंगल के रूप में परिवर्तित कर देंगे..!*
*बकरी चराने बाले कुछ लोग अब भी यहाँ आ धमकते है जो टहनियों को क्षति पहुचाते है।कई स्थानों पर बाउंड्री टूटी होने से जानवर भी अंदर आ जाते है जिससे अब भी काफी नुकसान होता है।इसके लिये दरकार है प्रशाशनिक मदद की..!यदि पौधरोपण में पोधो को महज हाँथ लगाकर उपकृत कर देने बाले आला तंत्र की इच्छा वास्तव में इस नगरी को पर्यावरण संरक्षण के साथ हरीतिमा से खूबसूरत बनाने की है तो उन्हें अब इस दिशा में आगे आना चाहिये।इस जगह को संरक्षित करने हेतु आवश्यक प्रयास करना चाहिए।महज़ जानवरो की रोकथाम हेतु मोके पर पड़े हुये पत्थरो की टूटे स्थानों पर पुनः दीवार बनाने व देखरेख के लिये चौकीदार नियुक्त करने मात्र से ही यह क्षेत्र पुनः कुछ दिनों में घना जंगल बन जायेगा जो पर्यावरण को संतुलित तो करेगा ही,साथ ही पर्यटक नगरी की खूबसूरती में भी चार चांद लगायेगा...!*
नोट- *सरकारी तंत्र अपनी भूमिका का निर्वहन करेगा क्या,इसका उत्तर वही जाने किन्तु "मदद बैंक"याचक की भूमिका में न रहकर प्रकृति को संवारने के लिये अपने प्रयासों को पूर्ण क्षमता के साथ करता था,है और रहेगा...!यकीनन,माँ वसुंधरा सभी को फल भी सुखद ही देंगी...!*
*साँसे हो रही कम,आओ पौधे बचाये-लगाये हम...!*
एक एक पौधा कीमती है,उसे बचाइये...! सांसो का ऋण चुकाइये....!