मुनि श्री अनुकंपा सागरजी महाराज का समाधिमरणचकड़ोल यात्रा



कस्बे में चातुर्मासरत मुनि श्री  विकसंत सागरजी महाराज  के सान्निध्य में साधनारत मुनिश्री  अनुकंपा सागरजी महाराज मंगलवार को समाधिस्थ हो गए। 90 वर्षीय मुनि अनुकंपा सागरजी ने पिछले 10 दिनों से संल्लेखना धारण कर आत्म साधना में लीन थे। मुनिश्री ने 10 दिन से आहार त्याग दिया था। मुनिश्री  की चकडोल यात्रा बुधवार सुबह 7 बजे को निकलेगी।
इसमें मुनि श्री  काे विराजित कर नगर भ्रमण करवाने के बाद जैन मंदिर के पीछे चीरावाली डूंगरी पर अंतिम क्रिया की जायेगी। मुनिश्री  की लोहारिया में चातुर्मासरत मुनि श्री  विकसंत सागरजी के सान्निध्य में साधना चल रही थी। जिनके दर्शन करने के लिए रोज सैकड़ों लोग दर्शनार्थ आ रहे हैं। जैन समाज लोहारिया मुनि श्री की साधना व तपस्या का साक्षी बना  मुनि श्री  के समाधिमरण की खबर सुनते ही पालोदा में विराजित मुनि श्री आज्ञासागर जी  महाराज समेत कई साधु संत लोहारिया पहुंचे।
      ईके परिचय मुनि श्री  अनुकंपा सागरजी महाराज
मूल रूप से भीमपुर निवासी मुनि श्री अनुकंपा सागरजी महाराज ने पिछले 20 साल से दिगंबर मुद्रा धारण कर रखी थी। इनका सांसारिक नाम शंकरलाल था।
मृत्यु महोत्सव है संल्लेखना
: जैन धर्म मे संल्लेखना का बड़ा महत्व है। यह मृत्यु महोत्सव माना जाता है। दिगंबर साधु को 28 मूलगुणों का पालन करना पड़ता है। साधु इन मूलगुणों का पालन करते हुए अपनी आत्मा के कल्याण के लिए साधना करता है व विभिन्न स्थानों पर विहार कर धर्म का प्रचार प्रसार करता है। लेकिन जब वह या उसका शरीर इन मूलगुणों की पालना में अपने आप को असमर्थ पाता है तो वह इच्छापूर्वक संल्लेखना धारण करता है, जिसमें वह समय के साथ एक एक रस का त्याग कर आत्मोत्सर्ग की ओर बढ़ता है। अंत में समाधि ग्रहण कर शरीर का त्याग करता है।
         संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी

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