सागवाड़ा-आचार्य सुनील सागर जी महाराज ने कहा कि जब भी दुर्भाग्य मिटता है तो सौभाग्य संभल जाता है और भावना बदलने से भाग्य बदल जाता है। भाव तथा भावना का बड़ा महत्व होता और जिसकी जैसी भावना होगी उसमें वैसे ही गुण विद्यमान होते हैं। गुणों से ही जीव की पहचान की जाती है। उन्होंने कहा कि भावों के उतार-चढ़ाव से जीव को उसके कर्म के अनुसार परिणाम प्राप्त होते हैं। अच्छे संस्कारित और मर्यादित गुणों से संसार में जीव की कद्र होती है। सोना तथा दूध भी अपने गुणों के कारण ही महत्व रखते है। आचार्य ने कहा कि मानव पर्याय जीवन में सत्कर्म के साथ ही पशुता के व्यवहार से बचना चाहिए और हमेशा जानवरों के साथ भी अच्छा व्यवहार करना चाहिए। आचार्य ने कहा कि पंच इंद्रिय जीव होने से इंसान को विवेक और बुद्धि से हमेशा सच्चाई की राह पर आगे बढऩा चाहिए।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी