सागर -हनुमानजी के जीवन को सभी जानते हैं। वे श्रीराम के अनन्य भक्त थे श्रीरामचंद्र जी को उन पर पूरा विश्वास और भरोसा था। जैन धर्म में भी हनुमानजी का उल्लेख है। उनका नाम वानर था। वा-नर यानी श्रेष्ठ पुरुष। वे विद्याधर थे। उनकी मां निर्वासित जीवन जी रही थीं। जब उनकी मां अंजना ने हनुमानजी को जन्म दिया तो ऊपर से विमान से आकर उनके भाई ने हनुमानजी को ले जाने का प्रयास किया लेकिन हनुमानजी उनसे छिटक गए और उनका शरीर एक चट्टान पर जाकर गिरा तो चट्टान पूरी चकनाचूर हो गई। लंका में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका भी रही है।
यह बात मुनिश्री प्रमाण सागर जी महाराज ने शंका-समाधान कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि भक्त कैसा होता हो, श्रीरामचंद्रजी से मिलने गए तो सीताजी ने उन्हें रोक दिया। कहा कि श्रीरामचंद्रजी विश्राम में हैं तो उन्होंने सीता जी से कहा कि मुझे अभी भगवान श्रीराम से मिलना है। सीता जी ने कहा कि अभी आप नहीं जा सकते हो। उन्होंने कहा सीताजी जब आप जा सकती हैं तो मैं क्यों नहीं। तो सीता जी ने कहा कि देखो मेरी मांग में सिंदूर भरा है इसलिए हम जा सकते हैं। तो हनुमानजी भी कम नहीं थे वह बाहर निकले और पूरे शरीर में सिंदूर पोतकर पहुंचे और बोले अब तो मैं जा सकता हूं।
मुनिश्री ने कहा कि भावना में ताकत होती है। विश्राम काल में जब रावण और हनुमान का मिलन हुआ तो दोनों में तय हुआ की शक्तिशाली कौन? तो यह तय होगा एक-एक मुक्का दोनों मारेंगे और जो जीतेगा वही शक्तिशाली माना जाएगा। पहले रावण ने हनुमानजी को मुक्का मारा तो हनुमान जी उस मुक्के को सह गए लेकिन जब हनुमानजी ने रावण को मारा मुक्का खाकर जमीन पर बैठ गया तो हनुमानजी ने अपना सिर पकड़ लिया तो रावण ने पूछा कि तुमने अपना सिर क्यों पकड़ा है हनुमानजी बताओ तो हनुमान जी ने कहा कि मैं यह सोच रहा हूं कि इतना भीषण मूक्का खाने के बाद आप बच कैसे गए। मुनिश्री ने कहा हनुमान नहीं होते तो सीता की खोज भी नहीं होती। मेरी दृष्टि में सब भीतर है और मेरे भीतर भी मेरा हनुमान है जो एक पुरुषार्थ है। हनुमानजी के पुरुषार्थ से ही सीता जी वापस लौटी थीं।
ईश्वर के प्रति लोगों के मन में लगातार श्रद्धा बढ़ रही है
उन्होंने कहा कि मंदिरों में श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है यह प्रसन्नता की बात है। क्रिया होगी तो प्रदर्शन भी होगा। मंदिरों में यदि भीड़ बढ़ रही है तो यह सकारात्मक लक्षण है। लोगों के हृदय में श्रद्धा बड़ी है भगवान के प्रति। यह सब लॉग डाउन के पहले की बातें हैं, लोगों को भगवान के प्रति हमेशा श्रद्धा भाव रखना चाहिए। क्योंकि भारत देश का नाम भी भरत भगवान के नाम पर पड़ा है और विश्व में इसे ऋषियों और मुनियों का देश भी कहा जाता है। उन्होंने कहा जिन के अनुयाई ज्यादा होते हैं, उनका नाम भी ज्यादा चलता है। भगवान महावीर स्वामी वर्तमान शासन में अंतिम शासन नायक थे उनकी जीवन गाथा भी बाद में ही लिखी गई है। अन्य तीर्थंकरों के इतिहास से ज्यादा भगवान महावीर स्वामी के बारे में लिखा गया है। उन्होंने कहा कि इतिहास में हर 100 वर्षों में कोई न कोई बड़ी त्रासदी या महामारी विभीषिका के रूप में आती है। आज संसाधन ज्यादा है इसका प्रचार प्रसार ज्यादा है इसके चलते इसे बड़ी महामारी कहा जा रहा है। हालांकि इतनी विभीषिका नहीं है। महाराजश्री ने कहा पतझड़ के बाद बसंत आता है और कोविड-19 पतझड़ नहीं, मैं बसन्त के रूप में देख रहा हूं।
त्रासदी से सारा विश्व त्रस्त है, लेकिन इसमें जो बातें सामने आ रही हैं वे ध्यान देने योग्य हैं
{ वाहनों के न चलने से दुर्घटनाएं बंद हैं। {कैदियों को पैरोल पर जाने की छूट मिल गई है। {उन तालाबों में जहां पानी गंदा होता था आज वहां पर पानी साफ है और मछलियां दिख रही हैं। उड़ीसा में तालाबों में बड़ी संख्या में कछुए दिखाई दे रहे हैं। जो पहले विलुप्त होने की कगार पर थे। { 100 वर्ष बाद पंजाब के जालंधर नगर से सवा दो सौ किलोमीटर दूर हिमालय का पहाड़ प्रदूषण मुक्त होने से दिखाई दे रहा है। {71% प्रदूषण दुनिया में कम हुआ है। {डीजल पेट्रोल की बिक्री नाम मात्र की रह गई है। {अपराध भी बहुत कम हैं।
हर साल 8 से 10 दिन लॉकडाउन लागू करने के बारे में सोचे सरकार
मुनिश्री ने कहा कि मेरा सरकार से प्रस्ताव है, आग्रह नहीं, कि लॉकडाउन को गंभीरता से लेना चाहिए और साल में एक बार 8 से 10 दिन का लॉक डाउन प्रतिवर्ष होना चाहिए। इसके लिए सरकार को विचार और चिंतन करना होगा।
संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी